ज्योति जवाहर खण्डकाव्य
(कानपुर, प्रतापगढ़, मिर्जापुर, ललितपुर, रामपुर एवं गोण्डा जिलों के लिए)
प्रश्न 1. ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य की कथासार/कथा/कथानक/ कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
उत्तर -‘ ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य की रचना श्री देवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ द्वारा की गई है। इस खण्डकाव्य में आधुनिक भारत के निर्माता और युगावतार पण्डित जवाहरलाल नेहरू के विराट व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है। यह खण्डकाव्य घटनाप्रधान न होकर भावनाप्रधान है।
कवि कहता है कि पण्डित नेहरू का व्यक्तित्व इतना विराट है कि सम्पूर्ण भारतवर्ष की विशेषताएँ उनके व्यक्तित्व में समा गई हैं। वे सूर्य के समान तेजस्वी हैं, चन्द्रमा के समान सुन्दर हैं, उनका स्वाभिमान हिमालय के समान ऊँचा है तथा मन सागर के समान अथाह गहराई लिए हुए है।
भारतवर्ष में जन्मे इस महापुरुष के महान् व्यक्तित्व में भारतीय संस्कृति की छवि मिलती है। उन्होंने देश के अनेक महापुरुषों के गुणों को अपनाते हुए उनके अनेक सांस्कृतिक एवं सामाजिक गुणों को अपने व्यक्तित्व में धारण किया। कवि के अनुसार नेहरू के व्यक्तित्व में भिन्न-भिन्न प्रान्तों और राज्यों के गुणों का समावेश इस प्रकार हुआ है-
गुजरात राज्य में जन्मे महात्मा गाँधी से नेहरूजी ने सत्य, अहिंसा, सद्भावना, प्रेम, मानवता तथा सहनशीलता का पाठ पढ़ा, जिस प्रकार श्रीराम ने गुरु वशिष्ठ से शिक्षा ग्रहण की थी, ठीक उसी प्रकार नेहरूजी ने महात्मा गाँधी से प्रेरणा तथा सीख ली थी। इसके अतिरिक्त उनके व्यक्तित्व पर गुजरात के ही भक्त कवि नरसी मेहता, वीर रस के कवि पद्मनाभ तथा महर्षि दयानन्द के गुणों का प्रभाव भी पड़ा।
महाराष्ट्र नेहरूजी को वीर शिवाजी की तलवार सौंपते हुए उन्हें अंग्रेजों से लोहा लेने की भी शक्ति प्रदान करता है। वह उन्हें प्रसिद्ध नारों- ‘करो या मरो’, ‘स्वतन्त्रतां हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ आदि का संकलन सौंपते हुए उनमें देशभक्ति का भाव भरता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र नेहरू को गुरु रामदास की राष्ट्रीय चेतना, ज्ञानेश्वर का गीता आधारित कर्मवाद, केशव गुप्त के नव-चेतना प्रदान करने वाले ओजस्वी गीत तथा तुकाराम एवं लोकानाथ के गीतों की धरोहर प्रदान करता है। इस प्रकार महाराष्ट्र नेहरू जी के व्यक्तित्व को विभिन्न रूपों में समृद्ध प्रदान करता है।
राजस्थान नेहरू जी में वीरता और त्याग की भावना भरता है। राजस्थान की भूमि बंजर और रेगिस्तान भरी है, किन्तु इसने अनेक अभाव सहन करते हुए देश की सेवा की है। यह वोरता की भूमि कहलाती है। इसने राणा साँगा, जयमल, चन्दबरदाई, राणा कुम्भा और महाराणा प्रताप के शौर्य तथा स्वतन्त्रता की भावना का स्मरण कराते हुए नेहरू जी के व्यक्तित्व को प्रभावित किया। कर्त्तव्यनिष्ठ तथा स्वामिभक्त पन्ना धाय तथा हजारों क्षत्राणियों द्वारा किया गया जौहर नेहरूजी में देश की आन-बान तथा शान की रक्षा करने का भाव भरता है। इसके अतिरिक्त मीरा अपनी भक्ति-भावना से नेहरूजी के व्यक्तित्व को उज्ज्वल बनाती है।
राजस्थान की इस वीर-भावना को देखकर सतपुड़ा राज्य भी कह उठा-
“बूढ़ा सतपुड़ा लगा कहने, हूँ दूर मगर अलगाव नहीं।
कम हुआ आज तक उत्तर से, दक्षिण का कभी लगाव नहीं।।”
सतपुड़ा से निकली नर्मदा, ताप्ती, महानदी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियाँ नेहरू के दर्शन हेतु पूरव-पश्चिम में दूर-दूर तक फैली हुई थी। दक्षिण भारत की प्रकृति भी नेहरूजी से मिलने के लिए विकल थी। सतपुड़ा अपने भीतर महावीर और गौतम के धर्मोपदेशों से मिले हुए ज्ञान को संजोए हुए था। वह मानव धर्म के सार को नेहरूजी को सौपता है। सतपुड़ा से नेहरूजी को कम्बन रामायण का ज्ञान मिला, रामानुजाचार्य और शंकराचार्य का आध्यात्मिक एवं दार्शनिक ज्ञान मिला तथा सन्त अप्पा के अहिंसावादी विचारों की विरासत मिली।
सतपुड़ा ने कला, साहित्य और संगीत के रूप में संजोकर रखी गई भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को भी नेहरूजी के व्यक्तित्व हेतु समर्पित कर दिया। सतपुड़ा से नेहरूजी को कालिदास की भावुकता मिली, कुमारिल की अद्भुत प्रतिभा का परिचय मिला, मोढ़ा की व्याकुलता मिली, फकीर मोहन की अंगारों वाली भाषा मिली तथा अकबर से टक्कर लेने वाली चांदबीबी का साहस मिला। सतपुड़ा तंजौर और भुवनेश्वर में निर्मित प्रतिभाओं में प्राचीन युगों का गौरव सहेज कर रखे हुए है। यहाँ तानसेन की वीणा के स्वरों की गूंज आज भी सुनाई देती है। ये सब नेहरूजी के व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित किए बिना नहीं रहते।
बंगाल राज्य अमूल्य रत्नों का भण्डार है। वह भी नेहरूजी पर अपना खजाना सुटाने के लिए आतुर है। वह कहता है-
“बंगाल लगा हल्ला करने, कंगाल नहीं में रत्नों का।
तेरे हित अभी संजोए हूँ. अरमान न जाने कितनों का।।”
बंगाल अपने हृदय में चण्डीदास एवं गोविन्ददास के गीतों की मधुरता, जयदेव के गीतों की ममता तथा कृतिवास द्वारा अनुवादित रामायण और महाभारत का ज्ञान संजोए हुए है। चैतन्य महाप्रभु की भक्ति भी उसके गौरवशाली अतीत का हिस्सा है। बंगाल में ही रहकर दौलत काजी और शाह जफर ने गजलों की रचना की थी। बंगाल कर्मठी और देशभक्तों की भूमि भी रही है। वह विवेकानन्द, दीनबन्धु और सुभाषचन्द्र बोस की देशभक्ति की भावना नेहरू में भरना चाहता है। वह बंकिमचन्द्र का राष्ट्र-प्रेम, टैगोर तथा शरतचन्द्र के साहित्य को अमूल्य निधि आदि सहित अपना सब कुछ नेहरूजी पर न्योछावर कर देता है।
नेहरूजी के व्यक्तित्व में अपनी छाप छोड़ने के लिए आसाम भी व्याकुल हो रहा है। यह कहता है-
“मेरी हर धड़कन प्यासी है, तेरे चरणों के चुम्बन को।
होती तैयार खड़ी है रे, जन-मन के स्नेह समर्पण को।।”
आसाम अपनी हरियाली और मन-मोहिनी प्रकृति के साथ नेहरूजी का अभिनन्दन करने को तत्पर है। उसके पास उन्हें देने के लिए बहुत कुछ है। वह कला और साहित्य का खजाना है। आसाम के माधव कन्दली ने रामायण का अनुवाद तथा भक्तकवि मनसा ने भक्ति गीतों की रचना करके जन-जन को मानसिक शान्ति तथा शुद्धता प्रदान की है। साहित्य तथा कला के रूप में संस्कृति को आगे बढ़ाने वाले गुरु शंकर आसाम के ही थे। आसाम के चरितपुथी ते विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाया था। इस प्रकार आसाम कई प्रकार से नेहरू के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।
बिहार की महिमा भी कुछ कम नहीं है। वह भी अपने भीतर व्याप्त करुणा, तप, सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, वीरता आदि गुणों को संचित किए हुए है। जैन तीर्थंकर महावीर से सम्बन्ध रखने वाला वैशाली नगर बिहार में ही है। महावीर ने जैन धर्म के रूप में मानवता को नई परिभाषा दी। विहार में आज भी समुद्रगुप्त का यशोगान किया जाता है। उसके पुत्र चन्द्रगुप्त ने भी अपनी वीरता से भारत को गौरवान्वित किया है। कलिंग विजय के पश्चात् अहिंसा को अपने जीवन का दर्शन बनाने वाले अशोक भी बिहार के पुत्ररत्न थे। ये सभी नेहरूजी के व्यक्तित्व को अत्यन्त प्रभावित करते हैं। बिहार, पतंजलि के दर्शन और पुष्यमित्र शुंग के गुणों को नेहरूजी को समर्पित कर उन्हें अपने बौद्धिक ज्ञान, संस्कृति एवं साहित्य से समृद्ध कर देना चाहता है।
उत्तर प्रदेश अपने आप को धन्य महसूस करता है, क्योंकि उसी की भूमि पर जवाहरलाल नेहरू ने जन्म लिया है। वह राम और कृष्ण के समय से महान् गुणों का वाहक रहा है। वह तुलसीदासकृत रामचरितमानस, सूरदास की वात्सल्यभरी वाणी, सारनाथ में दिए गए बुद्ध के उपदेश, कबीर का चिन्तन आदि को समेटे हुए नेहरूजी के सम्मुख प्रस्तुत है। वह इस महामानव से जुड़कर अति प्रसन्न है।
पंजाब अपनी गौरवशाली परम्परा लिए हुए नेहरूजी का अभिनन्दन करता है। जलियाँवाला बाग के द्वारा पंजाब नेहरू में करुण रस का संचार कर उनमें नव-चेतना और राष्ट्र-प्रेम जाग्रत करता है। वह विश्व की सबसे प्राचीन, परन्तु समृद्ध सभ्यता सिन्धु घाटी का घर है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा इसके मुख्य केन्द्र थे। पंजाब की मिट्टी में गुरुनानक की पावन करने वाली वाणी की अनुगूँज है। वह नेहरूजी के समक्ष श्रद्धानत होकर उनका स्वागत करता है।
कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है, अपना विलक्षण और अपूर्व प्राकृतिक सौन्दर्य लेकर नेहरूजी को आकर्षित करता है। वह उनमें सौन्दर्य की अनुभूति करने एवं उसकी प्रशंसा करने का गुण भरना चाहता है।
कुरुक्षेत्र नेहरूजी को गीता-ज्ञान देता हुआ, उन्हें अर्जुन के नाम से सम्बोधित करता है। वह उन्हें आदेश देता है कि जिस प्रकार अर्जुन ने अपने गाण्डीव से दुराचारी कौरवों का नाश किया था, उसी प्रकार तुम भी अत्याचारियों को समाप्त करो।
दिल्ली का अपना इतिहास बहुत करुणाजनक है। उसने बाबर और शेरशाह के अत्याचारों को निकट से देखा है। वह बार-बार उजड़ी और बसी है, परन्तु फिर भी वह खाली हाथ नहीं है। वह अकबर की साम्प्रदायिक सद्भावना से प्रभावित होकर उन्हे हिन्दू-मुस्लिम एकता का पाठ पढ़ाना चाहती है
वह उन्हें जहाँगीर की न्याय-नीति देना चाहती है। लालकिले के रूप में शाहजहाँ की कलात्मकना अर्पित करना चाहती है। वह अन्तिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के बलिदान को याद दिलाकर ‘संगम के राजा’ नेहरूजी को भाव-विभोर कर देती है।
इस प्रकार जवाहरलाल नेहरू के विराट व्यक्तित्व को राम, कृष्ण, मीरा, महात्मा गाँधी, शिवाजी, राणा साँगा, जयमल, चन्दबरदाई, राणा कुम्भा, महाराणा प्रताप, महावीर, गौतम, विवेकानन्द, दीनबन्धु, सुभाषचन्द्र बोस, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त, अशोक, अकबर, जहाँगीर तथा बहादुरशाह जफर आदि अनेक व्यक्तियों ने प्रभावित किया।
वस्तुतः जवाहरलाल नेहरू के चरित्र का निर्माण करने के लिए भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त और राज्य ने कुछ-न-कुछ दिया है। ‘ज्योति जवाहर’ के इस नायक के चरित्र-निर्माण में सम्पूर्ण भारत ने अपना योगदान दिया है। अन्त में कवि कह उठता है-
“जब लगा देखने मानचित्र, भारत न मिला तुमको पाया। जब तुमको देखा नयनों में, भारत का चित्र उभर आया।।”
प्रश्न 2. ‘ज्योति जवाहर’ खण्ड-काव्य के आधार पर कलिंग युद्ध का वर्णन कीजिए।
अथवा ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘कलिंग युद्ध’ का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य की ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जिसने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया हो और क्यों?
उत्तर- ‘ज्योति जवाहर’ खण्ड-काव्य में कवि श्री देवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ ने आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू को भारतीय संस्कृति और इतिहास के प्रतीक रूप में चित्रित किया है। इसके लिए कवि ने भारतीय इतिहास की अनेक घटनाओं का वर्णन किया है। इस काव्य में वर्णित घटनाओं में कलिंग युद्ध और उसके परिणाम का मेरे हृदय पर विशेष प्रभाव पड़ा है, क्योंकि इसका अत्यन्त मार्मिक वर्णन यहाँ किया गया है। संक्षेप में इसका प्रसंग निम्नवत् है-
कलिंग युद्ध की प्रमुख घटना
कलिंग युद्ध की घटना सम्राट अशोक के शासन काल में हुई। इस विध्वंसकारी युद्ध में रक्त की नदियाँ बह गई थीं, जिसमें सैनिक मछलियों के समान तैरते दिखाई दे रहे थे। इस युद्ध में अस्त्र-शस्त्रों की भयंकर ध्वनि सुनाई पड़ती थी। चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी।
नरमुण्ड कट-कट कर धरती पर गिर रहे थे। न जाने कितनी माताओं की गोद सूनी हो गई और अनगिनत नारियों की माँग का सिन्दूर मिट गया था और अनेक बहनें अपने भाइयों की मृत्यु पर रो रही थीं। इस प्रकार के भयानक दृश्य को देखकर सभी का हृदय करुण क्रन्दन करने लगा था।
सम्राट अशोक ने जब इतना भयंकर नरसंहार देखा तो उनका हृदय द्रवित हो उठा। उसने यह प्रण किया कि वह अब कभी भी हिंसा नहीं करेगा और न ही कोई युद्ध लड़ेगा। वह अपने मन में विचार करने लगा कि मेरे संकेत मात्र से न जाने कितने निरपराध व्यक्ति काल के गाल में समा गए हैं। अशोक का मन विचलित हो उठा। उसके हृदय में वैराग्य भाव जाग्रत हो गया। साम्राज्य विशाल होते हुए भी वह उसे छोटा और सारहीन प्रतीत होने लगा। कवि ने अशोक की मनोदशा का वर्णन करते हुए कहा है-
“सोने चाँदी का आकर्षण अब उसे घिनौना लगता था। साम्राज्यवाद का शीशमहल कुटिया से बौना लगता था।।”
कलिंग युद्ध के बाद अशोक पूर्णतया अहिंसक और वैरागी बन गया था। इस युद्ध ने उसके हृदय पर गहरा आघात किया था-
“जाने कैसी थी कचोट, दिन रहते जिसने जगा दिया। हिंसा की जगह अहिंसा का, अंकुर अन्तर में उगा दिया।।”
कलिंग युद्ध से अशोक का हृदय इतना दुःखी हुआ कि उसने सदैव के लिए तलवार फेंककर कभी युद्ध न करने की प्रतिज्ञा ली। वह महात्मा गौतम बुद्ध का अनुयायी हो बौद्ध भिक्षु बन गया। कवि ने अशोक की इस स्थिति का चित्रण इस प्रकार किया है-
“जो कभी न हारा औरों से, वह आज स्वयं से हार गया। भिक्षुक अशोक, राजा अशोक, से पहले बाजी मार गया।।”
‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य में अशोक के द्वारा कलिंग युद्ध करना, फिर वैराग्य पैदा हो जाना, इन सवका वर्णन खण्डकाव्य के नायक जवाहरलाल नेहरू के विचारों पर वैराग्य के प्रभाव को चित्रित करने के लिए किया गया है।
सचमुच कलिंग युद्ध और उससे प्रभावित अशोक का यह प्रसंग बड़ा ही रोमांचकारी, भावपूर्ण तथा भारतीय इतिहास की अन्यान्य घटनाओं में प्रभावकारी, प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुत खण्डकाव्य की कथा में कलिंग युद्ध के प्रसंग का बड़ा ही महत्त्व है। इसमें एक ओर तो अशोक को युद्ध में रत दिखाया है और दूसरी ओर युद्ध की भयंकरता तथा भीषण नरसंहार से उसके हृदय को परिवर्तित होते और हिंसा को छोड़कर अहिंसक बनते दिखाया गया है।
इस खण्डकाव्य में अशोक के द्वारा शान्ति और अहिंसा का सन्देश दूर-दूर तक फैलाने का वर्णन किया गया है। जवाहरलाल नेहरू भी शान्ति के अग्रदूत तथा हिंसा के विरोधी थे। कवि द्वारा अशोक से सम्बन्धित इस प्रसंग का वर्णन करके जवाहरलाल नेहरू के विचारों को अहिंसक बनाने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत काव्य का प्रमुख उद्देश्य इस प्रसंग के माध्यम से जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व को उजागर करना है। अतः यह प्रसंग मेरी दृष्टि में अति महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 3. ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य में व्यक्त राष्ट्रीय भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य के रचयिता कवि देवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ ने नेहरूजी के चरित्र के विविध आयामों पर प्रकाश डालते हुए उन्हें इस खण्डकाव्य का नायक बनाया है। उनके चरित्र को भारतवर्ष की भावनात्मक एकता के रूप में प्रस्तुत करना ही इस खण्डकाव्य का प्रतिपाद्य विषय है, साथ ही जवाहरलाल नेहरू की प्रशंसा करना तथा उनके विराट चरित्र की प्रेरणादायी बातों को अपनाने के लिए प्रेरित
करना ही इस खण्डकाव्य का मुख्य उद्देश्य है। वस्तुतः प्रस्तुत खण्डकाव्य में नेहरूजी के माध्यम से देश की भावनात्मक एकता के माध्यम से नेहरूजी के चरित्र का वर्णन किया गया है। इस कथन का तात्पर्य यह है कि कवि ने नेहरू के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए भारत के गौरवशाली अतीत की झाँकी प्रस्तुत की है तथा उसमें रची-बसी भावनात्मक एकता को स्पष्ट किया है। इस प्रकार कवि ने नेहरू के व्यक्तित्व में सम्पूर्ण भारत की छवि दर्शाते हुए, उनके व्यक्तित्व तथा भारतीय संस्कृति का सुन्दर समायोजन किया है। इन दोनों का समायोजन कर कवि अपने उद्देश्य की पूर्ति में भी सफल हुआ है।
इस खण्डकाव्य की भूमिका में कवि ने लिखा है, “जो लोग पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण का प्रश्न उठाकर जाति, भाषा, सम्प्रदाय और रीति-रिवाज की संकुचित मनोवृत्ति के आधार पर अलगाव और विघटन की बातें करते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि भारतवर्ष की सांस्कृतिक एकता सदियों से अपनी अखण्डता का उद्घोष करती हुई, समानताओं एवं विषमताओं की चट्टानों को तोड़ती हुई निरन्तर आगे बढ़ती जा रही है।” अपने इस कथन के अनुरूप कवि ने नेहरूजी के चरित्र को इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि भारतवर्ष की ये सारी विशेषताएँ उनके चरित्र में तिरोहित हो गई है। इस प्रकार ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य में नेहरू के व्यक्तित्व के माध्यम से भारतीय संस्कृति अपनी भावात्मक एकता के साथ मुखर हो उठी है।
चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 4 ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य के आधार पर उसके नायक (जवाहरलाल नेहरू )का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर– कवि देवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ द्वारा रचित ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य के नायक आधुनिक भारत के निर्माता पण्डित जवाहरलाल नेहरू हैं। इस खण्डकाव्य में ‘कवि ने सम्पूर्ण भारत की विशेषताओं को पण्डित नेहरू के व्यक्तित्व में ढालते हुए उन्हें युगावतार तथा लोकनायक के रूप में प्रस्तुत किया है। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- विराट व्यक्तित्व जवाहरलाल नेहरू का व्यक्तित्व भारतवर्ष के समान ही विराट था। उनके व्यक्तित्व के विविध रूप थे और वे अपने हर रूप में उत्कृष्ट थे। सूर्य का तेज़, चाँद की सुघड़ता, सागर की गहराई, धरती का धैर्य और पवन की गति उनके व्यक्तित्व में समाहित थी।
- आधुनिक भारत के निर्माता एवं देशभक्त जवाहरलाल नेहरू परम देशभक्त थे। उन्होंने गाँधीजी का अनुसरण करते हुए देश को स्वतन्त्रता दिलाने में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। स्वतन्त्रता मिलने के पश्चात् उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी। उन्होंने भारत को धर्मनिरपेक्ष, पन्थनिरपेक्ष तथा गणतान्त्रिक देश घोषित करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने स्वतन्त्र भारत के विकास हेतु पंचवर्षीय योजनाओं को आरम्भ किया। उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलकर ही आज भारत विकास कर रहा है।,
- भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि जवाहरलाल नेहरू भारतीय संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि एवं पोषक हैं। वह अपने देश के अतीत पर गौरव अनुभव करते है तथा इससे प्रेरणा लेते हैं। वह भारत के हर क्षेत्र के महान् व्यक्तियों के गुणों को ग्रहण करके अपने व्यक्तित्व को उदात्त बनाते हैं। उन्होंने राम, कृष्ण, गौतम, महावीर, महात्मा गाँधी, अशोक, अकबर, सुभाषचन्द्र बोस, टीपू सुल्तान, शंकराचार्य, कालिदास, रामानुजाचार्य, मीरा, राणा, प्रताप, चाँदवीबी, भवभूति, तुकाराम आदि से विविध शिक्षाएँ ग्रहण की। इन सभी का उनके चरित्र पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- लोकप्रिय राजनेता जवाहरलाल नेहरू भारत की जनता में अत्यन्त लोकप्रिय थे। कवि ने उनको युगावतार तथा लोकनायक के रूप में वर्णित किया है। कवि कहता है-
“मथुरा वृन्दावन अवधपुरी की, गली-गली में बात चली। फिर नया रूप धर कर उतरा, द्वापर त्रेता का महाबली।।”
एक सच्चे लोकनायक की भाँति नेहरूजी सभी देशवासियों के सुख-दुःख का अनुभव करते हैं, इसलिए देश के सभी प्रान्त एवं राज्य उन पर अपनी सहेज कर रखी गई अमूल्य निधि लुटाने में गौरव अनुभव करते हैं।
अहिंसा के समर्थक जवाहरलाल नेहरू के चरित्र पर सम्राट अशोक और महात्मा गाँधी का प्रभाव था। इनसे उन्होंने अहिंसा की सीख ली थी, परन्तु उन्होंने अहिंसा को नए सिरे से परिभाषित किया था। उनके अनुसार – “अत्याचारी के चरणों पर, झुक जाना भारी हिंसा है। पापी का शीश कुचल देना, जी, हिंसा नहीं अहिंसा है।”
विश्व शान्ति के अग्रदूत एवं युद्ध विरोधी भारतीय संस्कृति में विश्वास रखने वाले नेहरूजी विश्व शान्ति के अग्रदूत थे। वह युद्धों का सदा विरोध करते थे, उन्होंने निशस्त्रीकरण, पंचशील, गुट निरपेक्ष आदि को बढ़ावा देकर विश्व में शान्ति की स्थापना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
अतः कहा जा सकता है कि जवाहरलाल नेहरू के चरित्र में उन सभी गुणों का समावेश था, जिनके कारण उन्हें ‘लोकनायक’, ‘युगावतार’ तथा ‘संगम का राजा’ कहा जाता है। वह भारतीय संस्कृति के सच्चे अनुयायी थे, इसलिए उनके चरित्र में सम्पूर्ण भारत की छवि स्वतः ही मिल जाती है।
प्रश्न 5. “ज्योति जवाहर” खण्डकाव्य के आधार पर अशोक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर- ‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य में श्रीदेवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ ने जवाहरलाल नेहरू के चरित्र के उजागर करने के साथ-साथ उनके चरित्र का सम्राट अशोक के चरित्र के साथ तुलनात्मक अध्ययन भी किया है। उन्होंने भारतीय इतिहास की अनेक घटनाओं का वर्णन करते हुए कलिंग युद्ध का भी वर्णन किया है, जिसमें अशोक के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया गया है-
- साम्म्राज्यवादी सम्राट अशोक महान् शासक होने के साथ-साथ साम्राज्यवादी भी थे। उन्होंने राजा बनने से पहले ही बहुत से राज्यों को जीत लिया था।
- अजेय कहा जाता है कि सम्राट अशोक अपने जीवन में एक भी युद्ध न हारे थे। अतः वे अजेय शासक थे। कवि ने भी अपनी एक पंक्ति में इस बारे में उल्लेख किया है-
‘जो कभी न हारा औरों से, वह आज स्वयं से हार गया।’
- पश्चातापी कहा जाता है कि सम्राट अशोक अपने जीवन में एक भी युद्ध न हारे थे। अतः वे अजेय शासक थे। कवि ने भी अपनी एक पंक्ति में इस बारे में उल्लेख किया है-
“जो कभी न हारा औरों से, वह आज स्वयं से हार गया।”
वैरागी और अहिंसक कलिंग युद्ध के बाद अशोक पूर्ण रूप से अहिंसक और वैरागी बन चुके थे। इस युद्ध ने उनके हृदय पर गहरा आघात किया था। “जाने कैसी भी कचोट, दिन रहते जिसने जगा दिया।
हिंसा की जगह अहिंसा का, अंकुर अन्तर में उगा दिया।।”
. महान् बौद्ध भिक्षु कलिग युद्ध के पश्चात् अशोक ने सदैव के लिए तलवार 5 फेंक दी और कभी न युद्ध करने का प्रण दिया। एक बौद्ध भिक्षुक से दीक्षा • ग्रहण कर सम्राट अशोक बौद्ध भिक्षु बन गए और जीवन पर्यन्त बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रचार करते रहे।
“भिक्षुक अशोक, राजा अशोक से पहले बाजी मार गया।”