वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1
प्रश्न 1. भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के तीन कारणों को लिखिए।
अथवा भारत में राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर : भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के तीन कारण निम्नलिखित थे-
- उपनिवेशवाद का विरोध – उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आन्दोलन से जुड़ी हुई थी। औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को समझने लगे थे। उन्होंने उत्पीड़न और दमन का मिल-जुलकर मुकाबला किया था। इसने विभिन्न समूहों के लोगों को एकता के सूत्र में बाँध दिया था। उन्होंने महसूस किया कि औपनिवेशिक शासन को समाप्त किए बिना उनके कष्टों का अन्त नहीं होगा। इस विचार ने राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया।
- करों में वृद्धि – प्रथम विश्वयुद्ध के कारण रक्षा व्यय में अत्यधिक वृद्धि हुई। इस खर्चे की पूर्ति के लिए सरकार ने करों में वृद्धि कर दी। सीमा शुल्क भी बढ़ा दिया गया तथा आयकर नामक एक नया कर भी लगा दिया गया। इससे भारतीयों में घोर असन्तोष उत्पन्न हुआ जिसने राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
- जनता की आकांक्षाएँ पूरी न होना- भारतीयों को आशा थी कि प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् उनके कष्टों और कठिनाइयों का अन्त हो जाएगा। परन्तु उनकी आकांक्षाएँ पूरी नहीं हुई। इस कारण भी भारतीयों में घोर असन्तोष व्याप्त था। इसने भी राष्ट्रवाद के विकास में योगदान दिया।
प्रश्न 2. गांधी जी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ में असहयोग आन्दोलन के पक्ष में क्या तर्क दिया? [2020]
उत्तर : गांधी जी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ में असहयोग आन्दोलन के पक्ष में यह तर्क दिया था- “भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और वह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है। यदि भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो सालभर के भीतर ब्रिटिश शासन का अन्त हो जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी।”
प्रश्न 3 . नमक सत्याग्रह क्यों प्रारम्भ किया गया था? उसका संक्षिप्त. विवरण दीजिए। [2020]
अथवा 1930 में महात्मा गांधी ने नमक को अपने आन्दोलन का आधार क्यों चनाया? इस आन्दोलन का क्या प्रभाव पड़ा? [2022]
उत्तर : गांधी जी द्वारा की गई नमक यात्रा वास्तव में उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक शक्तिशाली प्रतीक था। चूँकि ‘नमक’ भोजन का अभिन्न हिस्सा है और निर्धन-धनवान सभी इसका प्रयोग करते हैं, इसलिए नमक को गांधी जी ने अपने आन्दोलन का आधार बनाया। नमक पर लगे हुए कर तथा उसके उत्पादन पर सरकारी इजारेदारी का गांधी जी द्वारा घोर विरोध किया गया। 31 जनवरी, 1930 ई० को गांधी जी ने वायसराय इरविन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने ग्यारह माँगों का उल्लेख किया था। इनमें से कुछ सामान्य माँगें थीं जबकि कुछ माँगे उद्योगपतियों से लेकर किसानों तक विभिन्न तबकों से जुड़ी हुई थीं। गांधी जी इन माँगों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ना चाहते थे ताकि सभी उनके अभियान में शामिल हो सकें। इनमें से सर्वाधिक प्रमुख माँग नमक कर को समाप्त करने के बारे में थी। सफलतापूर्वक नमक यात्रा निकालकर गांधी जी ने औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार को अपने सत्याग्रह के तरीके से उत्तर दिया। नमक यात्रा वास्तव में उपनिवेशवाद के विरुद्ध प्रतिरोध का सबसे बड़ा प्रतीक थी।
प्रश्न 4. भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष में गांधी जी के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर : भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष में गांधी जी की सेवाएँ विशद् थीं। यहाँ तक कि 1919 से 1947 ई० तक का राष्ट्रीय आन्दोलन का युग गांधी युग कहा जाता है। वास्तव में भारत को स्वतन्त्र कराने का जो श्रेय महात्मा गांधी को प्राप्त है वह अन्य किसी भारतीय नेता को प्राप्त नहीं है। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने लिखा है- “मेरे विचार से गांधी जी को भारतीय जनता, सम्भवतः संसार को दुःखी मानव जाति के प्रति सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने अत्याचार का सामना करने के लिए सत्याग्रह के रूप में एक विचित्र तथा अद्वितीय साधन दिया। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सफलतापूर्वक लड़ा जा सकता है।”
डॉ० राधाकृष्णन के शब्दों में- “गांधी जी की महानता उनके वीरत्वपूर्ण संघर्षों से कहीं अधिक उनके पवित्र जीवन में, विनाशकारी तत्त्वों के उत्थान काल में भी उनकी आत्मा की सृजनशक्ति तथा उनके जीवनदायक तत्त्वों के अदम्य
विश्वास में निहित है।” पं० जवाहरलाल नेहरू ने गांधी जी को ‘ईश्वरीय मानव’ कहा था।
वस्तुतः महात्मा गांधी स्वतन्त्रता संघर्ष के कर्णधार थे। उनके अद्भुत व्यक्तित्व एवं अविस्मरणीय कार्यों को देखते हुए ही यह कहा गया है, “भावी पीढ़ियाँ सहसा यह विश्वास नहीं करेंगी कि ऐसा हाड़-मांस का व्यक्ति कभी इस पृथ्वी पर रहा था।”
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. भारत छोड़ो आन्दोलन पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारत छोड़ो आन्दोलन
क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन छेड़ने का फैसला किया। अगस्त 1942 में शुरू किए गए आन्दोलन को ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ के नाम से जाना गया।
भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ करने के कारण
- अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति – सितम्बर 1939 में द्वितीय विश्वयुद्धप्रारम्भ हो गया। महात्मा गांधी व जवाहरलाल नेहरू दोनों ही हिटलर व नाजियों के आलोचक थे। तदनुरूप उन्होंने फैसला किया कि यदि अंग्रेज युद्ध समाप्त होने के बाद भारत को स्वतन्त्रता देने पर सहमत हों तो कांग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में सहायता दे सकती है। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके विरोध में कांग्रेस मन्त्रिमण्डल ने अक्टूबर 1939 में त्यागपत्र दे दिया। इस घटनाक्रम ने अंग्रेजी साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने हेतु प्रोत्साहित किया।
- क्रिप्स मिशन की असफलता- द्वितीय विश्वयुद्ध में कांग्रेस व गांधी जी का समर्थन प्राप्त करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विंस्टन चर्चिल ने अपने एक मन्त्री सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। क्रिप्स के साथ वार्ता में कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया कि यदि धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन कांग्रेस का समर्थन चाहता है तो वायसराय को सबसे पहले अपनी कार्यकारी परिषद् में किसी भारतीय को एक रक्षा सदस्य के रूप में नियुक्त करना चाहिए। इसी बात पर वार्ता टूट गई। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद गांधी जी ने ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आन्दोलन प्रारम्भ करने का फैसला किया।
- भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारम्भ – 9 अगस्त, 1942 को गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया। गांधी जी को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया तथा सभाओं, जुलूसों व समाचार-पत्रों पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए गए। इसके बावजूद देशभर में युवा कार्यकर्त्ता हड़तालों एवं तोड़-फोड़ की कार्यवाहियों के माध्यम से आन्दोलन चलाते रहें। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत होकर अपनी गतिविधियों को चलाते रहे। पश्चिम में सतारा एवं पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतन्त्र सरकार (प्रति सरकार) की स्थापना कर दी गयी।
आन्दोलन का अन्त- अंग्रेजों ने भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति कठोर रवैया अपनाया फिर भी इस विद्रोह का दमन करने में साल भर से अधिक समय लग गया।
आन्दोलन का महत्त्व – भारत छोड़ो आन्दोलन में लाखों की संख्या में आम भारतीयों ने भाग लिया तथा हड़तालों एवं तोड़-फोड़ के माध्यम से आन्दोलन को आगे बढ़ाते रहे। इस आन्दोलन के कारण भारत की ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार यह बात अच्छी तरह जान गई कि जनता में कितना व्यापक असन्तोष है। सरकार समझ गई कि अब वह भारत में ज्यादा दिनों तक शासन नहीं कर पाएगी अर्थात् अंग्रेजी राज समाप्ति की ओर है। यद्यपि अंग्रेजी सरकार ने आन्दोलन को कुचल दिया परन्तु वह भारत की आम जनता की राष्ट्रवादी भावनाओं को न कुचल सकी। इस आन्दोलन का सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि कुछ वर्षों बाद अंग्रेजो को भारत छोड़ना ही पड़ा और भारत को अंग्रेजी दासता से आजादी प्राप्त हुई।
प्रश्न 2. महात्मा गांधी के ‘सत्याग्रह’ पर एक निबन्ध लिखिए। [2020]
अथवा महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में सत्याग्रह एवं अहिंसा का किस प्रकार प्रयोग किया? [2022]
अथवा ‘सत्याग्रह’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा गांधी जी के सत्याग्रह के विचारों का उल्लेख कीजिए।[2023 FC]
उत्तर : ‘सत्याग्रह’ जन आन्दोलन की एक नवीन पद्धति थी। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के विरुद्ध है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा द्वारा अपने संघर्ष में सफल हो सकता है। इसके लिए दमनकारी शत्रु की चेतना को झिंझोड़ना चाहिए। महात्मा गांधी ने मार्च 1920 में अपना घोषणा पत्र जारी किया जिसमें उन्होंने सत्याग्रह पर आधारित अहिंसक असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने की घोषणा की। अन्य तीन सत्याग्रह आन्दोलन थे- चम्पारण सत्याग्रह, खेड़ा सत्याग्रह, अहमदाबाद मिल मजदूरों का समर्थन । गांधी जी सत्याग्रह जैसी नवीन परिपाटी के प्रणेता थे। उन्होंने लोगों से स्वदेशी सिद्धान्त व प्रवृत्तियों को अपनाने का आग्रह किया, जिसमें चरखे का प्रयोग, सूत कातना तथा छुआछूत को दूर करने का आग्रह सम्मिलित था।
प्रश्न 3. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे? इसके क्या परिणाम रहे?
अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब चलाया गया था? इसके कारणों का उल्लेख कीजिए।
[2022
अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन का क्या अर्थ है? इसे क्यों चलाया गया?इसका क्या प्रभाव पड़ा?[2023 EY]
उत्तर :
सविनय अवज्ञा आन्दोलन
दिसम्बर 1921 ई० के अहमदाबाद अधिवेशन में महात्मा गांधी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने का एकाधिकार दे दिया गया था, परन्तु चौरी-चौरा की हिंसक घटना, असहयोग आन्दोलन के स्थगन तथा महात्मा गांधी की गिरफ्तारी ने इस आन्दोलन की योजना को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण
1927 ई० में साइमन कमीशन की नियुक्ति और उसके प्रतिवेदन ने देशभर में असन्तोष की लहर दौड़ा दी और सविनय अवज्ञा आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार हो गई। 1930 ई० में गांधी जी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने के
निम्नलिखित प्रमुख कारण थे-
- नेहरू रिपोर्ट की अस्वीकृति – सरकार ने सर्वदलीय सम्मेलन में पारित नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया जिससे भारत में संवैधानिक तथा उतरदायी शासन की माँग समाप्त होती दिखाई दी।
- अत्यधिक आर्थिक मन्दी – उस समय भारत बहुत अधिक आर्थिक मन्दी (Economic Depression) की चपेट में था जिससे मजदूरों तथा कृषक की आर्थिक दशा निरन्तर शोचनीय होती जा रही थी।
- स्वतन्त्रता की माँग की अस्वीकृति – ब्रिटिश सरकार ने भारत को पूर्ण स्वराज्य देने से इनकार कर दिया था। वह अधिराज्य स्थिति (Dominion Status) के संविधान बनाने के लिए गोलमेज सम्मेलन को बुलाने के लिए तैयार न थी। इसलिए कांग्रेस के पास इस आन्दोलन को चलाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प शेष नहीं था।
- बारडोली में सफल सत्याग्रह – ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध 1928 ई० के मध्य सरदार पटेल के नेतृत्व में किसानों ने बारडोली में एक सफल सत्याग्रह किया था जिसमे किसानों ने सरकार को भूमि कर देने से इनकार कर दिया था इस सफलता से कांग्रेस का मनोबल बढ़ा जो अन्ततः सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने के लिए प्रेरक तत्त्व के रूप में सामने आया।
- मेरठ षड्यन्त्र केस-1929 ई० में सरकार ने कम्युनिस्ट नेताओं को गिरफ्तार करके उन पर केस चलाना प्रारम्भ कर दिया था जो मेरठ षड्यन्त्र केस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसमें अनेक व्यक्तियों पर राजद्रोह का अभियोग लगाकर उन्हें कठोर यातनाएँ दी गईं।
इन परिस्थितियों को देखते हुए गांधी जी को बाध्य होकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करना पड़ा।
कालान्तर में यह आन्दोलन उग्र हो गया। 14 जुलाई, 1934 ई० को महात्म गांधी ने जन-आन्दोलन को रोक दिया परन्तु व्यक्तिगत सत्याग्रह चलता रहा। इससे जनता का उत्साह निरन्तर कर्म होता गया तथा नैतिक पतन के चिह्न दिखाई देने प्रारम्भ हो गए। इसलिए 7 अप्रैल, 1934 ई० को महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा
आन्दोलन को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया। जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस तथा पटेल आदि नेताओं ने गांधी जी के इस निर्णय की कटु आलोचना की।
परिणाम – सविनय अवज्ञा आन्दोलन के निम्नलिखित परिणाम सामने आए-
- इस आन्दोलन ने भारतीयों में राष्ट्रीय भावना को जाग्रत कर दिया।
- इस आन्दोलन के कारण ब्रिटिश सरकार का ध्यान भारत में संवैधानिक सुधार करने की ओर गया।
- इस आन्दोलन के प्रभाव से घबराकर शासन ने भारत में साम्प्रदायिकता को और अधिक बढ़ाने का प्रयत्न किया।
- इस आन्दोलन के दौरान पूना समझौते के माध्यम से हिन्दुओं और हरिजनों में पुनः एकता स्थापित हुई।
- इस आन्दोलन ने ही 1935 ई० के ‘भारतीय शासन अधिनियम’ की पृष्ठभूमि तैयार की।
प्रश्न 4. रॉलेट एक्ट क्या था? उसका विरोध कैसे किया गया? क्या परिणाम हुआ?[2020]
उत्तर : रॉलेट एक्ट- माण्टेग्यू की घोषणा के पश्चात् माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट तैयार हुई। इस रिपोर्ट को कार्यरूप देने के लिए 1919 ई० में एक अधिनियम पारित किया गया जिसमें प्रान्तों में आंशिक उत्तरदायी शासन स्थापित करने का उल्लेख किया गया, किन्तु औपनिवेशिक स्वराज के विषय में नीति स्पष्ट नहीं की गई। अतः स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया बल्कि राष्ट्रीय आन्दोलन में और तीव्रता आ गई। इस आन्दोलन का दमन करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। फरवरी 1919 ई० में रॉलेट ने दो विधेयक प्रस्तावित किए जो पारित होने के पश्चात् रॉलेट एक्ट के नाम से प्रसिद्ध हुए। अनेक भारतीय नेताओं द्वारा इस कानून का विरोध किया गया, किन्तु ब्रिटिश सरकार ने 21 मार्च, 1919 ई० को इसे लागू किया। इस एक्ट के अनुसार किसी भी व्यक्ति को मात्र सन्देह पर ही गिरफ्तार किया जा सकता था अथवा गुप्त मुकदमा चलाकर उसे दण्डित किया जा सकता था। रॉलेट एक्ट को भारतीयों ने ‘काला कानून’ कहकर पुकारा।
परिणाम- रॉलेट एक्ट के पास होने से गांधी जी का अंग्रेजों की न्यायप्रियता और ईमानदारी से विश्वास समाप्त हो गया। उन्होंने रॉलेट एक्ट के विरोध में जनमत तैयार करने के लिए देश का तूफानी दौरा किया और देशवासियों को सलाह दी कि वे सत्य और अहिंसा द्वारा इस काले कानून का विरोध करें।
प्रश्न 5. असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया गया? आन्दोलन- कारियों के चार कार्य लिखिए। [2020, 22]
अथवा महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का क्या अर्थ है? इसके क्या कारण थे? [2022]
अथवा असहयोग आन्दोलन किसने चलाया? इसके कारणों का उल्लेख कीजिए। [2022] अथवा असहयोग आन्दोलन कब चलाया गया? इस आन्दोलन के किन्हीं दो कारणों की विवेचना कीजिए।
[2023 EX]
अथवा असहयोग आन्दोलन के कारण तथा उसके प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2023 FD]
उत्तर : प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश में कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं जिनका गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध खुलकर विरोध किया। यही विरोध इतिहास में असहयोग आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।
असहयोग आन्दोलन के कारण
कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन शुरू करने का निर्णय लिया। यह एक क्रान्तिकारी कदम था। कांग्रेस ने पहली बार सक्रिय कार्यवाही अपनाने का निश्चय किया। इस क्रान्तिकारी परिवर्तन के अनेक कारण थे। अब तक महात्मा गांधी ब्रिटिश सरकार की न्यायप्रियता में विश्वास करते थे और उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को पूरा सहयोग दिया था,किन्तु जलियाँवाला बाग नरसंहार, पंजाब में मार्शल लॉ और हण्टर कमेटी की जाँच ने उनका अंग्रेजों के न्याय से विश्वास उठा दिया। उन्होंने अनुभव किया कि अब पुराने तरीके छोड़ने होंगे। कांग्रेस से उदारवादियों के अलग हो जाने के बाद कांग्रेस पर पूरी तरह से गरमपन्थियों का नियन्त्रण हो गया। उधर तुर्की और मित्रराष्ट्रों में सेब्रेस की सन्धि की कठोर शर्तों से मुसलमान भी रुष्ट थे। देश में अंग्रेजों के प्रति बड़ा असन्तोष था। महात्मा गांधी ने मुसलमानों के खिलाफत आन्दोलन में उनका साथ दिया तथा असहयोग आन्दोलन छेड़ने का विचार किया।
सितम्बर 1920 ई० में कलकत्ता में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव रखा। सी०आर० दास, बी०सी० पाल, ऐनी बेसेण्ट, जिन्ना और मालवीय जी ने इसका विरोध किया, लेकिन दिसम्बर 1920 ई० में कांग्रेस के नियमित अधिवेशन में असहयोग का प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया तथा विरोधियों ने भी इस प्रस्ताव
का समर्थन किया।
इस आन्दोलन के मुख्य विन्दु थे- खिताबों तथा पदवियों का त्याग, स्थानीय निकायों में नामजदगी वाले पदों से इस्तीफा, सरकारी दरबारों या सरकारी अफसरों के सम्मान में आयोजित उत्सवों में भाग न लेना, बच्चों को स्कूलों से हटा लेना, अदालतों का बहिष्कार, फौज में भरती का बहिष्कार आदि। असहयोगियों के लिए अहिंसा तथा सत्य का पालन करना आवश्यक था। गांधी जी को विश्वास था कि इस आन्दोलन से एक वर्ष में ‘स्वराज’ की प्राप्ति हो जाएगी।
आन्दोलनकारियों के चार कार्य थे- (i) विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई। (ii) बहुत-से छात्रों ने स्कूल तथा कॉलेजों का बहिष्कार किया। (iii) महात्मा गांधी ने ‘केसर-ए-हिन्द’ का खिताब छोड़ दिया। (iv) 13 नवम्बर, 1921 ई० को प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के समय बम्बई (मुम्बई) में हड़ताल रखी गई। दिसम्बर 1921 ई० में प्रिंस के कलकत्ता (अब कोलकाता) आगमन पर भी हड़ताल रखी गई।
ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन को कुचलने के लिए व्यापक दमन चक्र चलाया। महात्मा गांधी के अलावा सभी कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। चौरी-चौरा की एक अप्रिय घटना के कारण महात्मा गांधी ने यह आन्दोलन 1922 ई० में वापस ले लिया।
असंहयोग आन्दोलन के प्रभाव
- (1) यह आन्दोलन, अपने ढंग का एक अनूठा प्रयोग था। ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध जनता द्वारा पहली बार व्यापक स्तर पर अहिंसात्मक आन्दोलन चलाया गया।
- (2) ग्रामीण तथा शहरी इलाकों में महिलाओं, बच्चों तथा आम जनता ने आन्दोलन में सहभागिता की।
- (3) लोगों में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रति लगाव की प्रवृत्ति जाग्रत हुई।
- (4) राष्ट्रवाद के प्रसार के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा, स्वदेशी वस्त्र, स्वदेशी संस्थाओं एवं हिन्दी की लोकप्रियता में वृद्धि हुई।