मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय
पद्यांश 1–
नहीं चाहिए बुद्धि बैर की
भला प्रेम का उन्माद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है,
पावें सभी प्रसाद यहाँ।
सब तीर्थों का एक तीर्थ यह
हृदय पवित्र बना लें हम
आओ यहाँ अजातशत्रु बनें,
सबको मित्र बना लें हम ।
रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने
मन के चित्र बना लें हम।
सौ-सौ आदर्शों को लेकर
एक चरित्र बना लें हम।
शब्दार्थ– वर दुश्मनी; उन्माद उत्साह असीमित अजातशत्र शत्रुहीना
सन्दर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के काव्यखण्ड के ‘भारत माता का मन्दिर यह’ शीर्षक से उद्धृत है। यह काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित है।
प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने भारत की गौरवशाली महिमा का बखान किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि हमारे देश में असीमित प्रेम और मानवता की भावना विद्यमान है, इसलिए हमें किसी से बैर या दुश्मनी की आवश्यकता नहीं है। इसी प्रेम की असीमितता के कारण यहाँ प्रत्येक व्यक्ति का कल्याण होता है और सभी प्रसन्न रहते हैं। कवि ने भारत देश को सभी तीर्थों का तीर्थ कहते हुए हमें अपना मन शुद्ध बनाए रखने के लिए प्रेरित किया है। कवि ने समस्त देशवासियों से अनुरोध करते हुए कहा है कि हमे शत्रुहीन बनना है और सभी से मित्रता करनी है। हमारे सम्मुख देश में स्थापित सौहार्द, समानता के गुण हैं, इन्हीं सद्गुणों को ग्रहण करते हुए हमें अपने भविष्य का निर्माण करना है। कवि आगे कहता है, भारत में गाँधी, भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे अनेक महान् व्यक्तियों का जन्म हुआ है, जिनके आदर्शों पर चलकर समस्त भारतवासियों को अपना चरित्र निर्माण करना चाहिए।
काव्य सौन्दर्य–
- भाषा– खड़ी-बोली
- गुण– प्रसाद
- शैली– गीतात्मक
- छन्द– मुक्त
- शब्द-शक्ति– अभिधा
- अलंकार– पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार- ‘सौ-सौ’ में एक शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
पद्यांश 2–
भारत माता का मन्दिर यह
सबका शिव कल्याण यहाँ है
जाति-धर्म या सम्प्रदाय का,
सबका स्वागत, सबका आदर
राम, रहीम, बुद्ध, ईसा का,
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के
गुण गौरव का ज्ञान यहाँ।
समता का संवाद जहाँ
पावें सभी प्रसाद यहाँ।
नहीं भेद-व्यवधान यहाँ,
सबका सम सम्मान यहाँ।
सुलभ एक सा ध्यान यहाँ,
शब्दार्थ– प्रसाद-खुशहाली/प्रसन्नता; व्यवधानं विघ्न/बाधाः सुलभ आसानी से मिलने वाला; गौरव मान।
सन्दर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के काव्यखण्ड के ‘भारत माता का मन्दिर यह’ शीर्षक से उद्धृत है। यह काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित है।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में मैथिलीशरण गुप्त जी ने भारत के गौरवशाली रूप का गुणगान करते हुए उसकी कल्याणकारी भावना का वर्णन किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि भारत ऐसा अद्वितीय देश है जिसकी कल्याणकारी भावना उसे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है। कवि ने इस पद्यांश में भारत को ऐसे मन्दिर के रूप में स्थापित करके दिखाया है, जहाँ प्रत्येक मानव को अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार समान रूप से है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ सबका कल्याण होता है और सभी प्रसन्नतारूपी प्रसाद ग्रहण करते हैं।
इस देश में जाति-धर्म या किसी सम्प्रदाय की प्रगति को लेकर भेदभाव रूपी बाधाएँ नहीं हैं। यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख तथा ईसाई सभी सम्प्रदायों का स्वागत हृदय से किया जाता है और बिना किसी भेदभाव के समान रूप से सभी को सम्मान दिया जाता है। इस देश में जो स्थान राम का है वही स्थान रहीम, बुद्ध और ईसा मसीह का भी है। भारत में भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के बारे में सभी लोगों को बताया जाता है और उनके प्रति आदर और सम्मान का भाव रखने हेतु प्रेरित किया जाता है।
काव्य सौन्दर्य–
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भारत के गौरवशाली रूप का वर्णन किया है।
- भाषा– खड़ी बोली
- गुण– प्रसाद
- शैली– मुक्तक/गीतात्मक
- छन्द– मुक्त
- शब्द शक्ति– अभिधा
- अलंकार–
- अनुप्रास अलंकार- ‘सबका स्वागत सबका आदर, सबका सम सम्मान यहाँ’ इस पंक्ति में ‘स’ वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
- पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार- ‘भिन्न-भिन्न’ में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- अनुप्रास अलंकार- ‘गुण गौरव’ में ‘ग’ वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
पद्यांश 3–
बैठो माता के आँगन में
नाता भाई-बहन का
समझे उसकी प्रसव वेदना
वही लाल है माई का
एक साथ मिल बाँट लो
अपना हर्ष विषाद यहाँ है
सबका शिव कल्याण यहाँ है,
पावें सभी प्रसाद यहाँ।
मिला सेव्य का हमें पुजारी
सकल काम उस न्यायी का
मुक्ति लाभ कर्तव्य यहाँ है
एक-एक अनुयायी का
कोटि-कोटि कण्ठों से मिलकर
उठे एक जयनाद यहाँ
पावें सभी प्रसाद यहाँ
शब्दार्थ– प्रसव वेदना असहनीय पीड़ा, लाल-बेटा, माई माता, हर्ष-खुशी, विषाद दुःख, अनुयायी अनुसरण करने वाला, जयनाद-जयकार के नारे।
सन्दर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के काव्यखण्ड के ‘भारत माता का मन्दिर यह’ शीर्षक से उद्धृत है। यह काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित है।
प्रसंग– प्रस्तुतं पद्यांश में कवि ने गाँधीवादी विचारधारा प्रकट करते हुए भारत माता का गुणगान किया है।
व्याख्या– कवि कहता है कि भारत माता के विस्तृत आँगन रूपी क्षेत्र में सभी व्यक्तियों को बन्धुत्व की भावना एवं भाई-चारे की भावना स्थापित करनी चाहिए। कवि ने भारत माता के सच्चे सपूत की पहचान बताते हुए कहा है कि जब देश में भेदभाव एवं साम्प्रदायिकता की स्थिति उत्पन्न होती है, तब भारत माता की असहनीय पीड़ा को समझने वाला व्यक्ति ही उसका सच्चा सपूत होता है। कवि आगे कहता है कि भारत माता के सभी बच्चों को अपने सुख-दुःख को बाँटना चाहिए, जिससे प्रेम और बन्धुत्व की भावना प्रकट होगी तथा सवका कल्याण सम्भव होगा।
कवि कहता है कि भारत माता को महात्मा गाँधी जैसे सपूतों की आवश्यकता है। महात्मा गाँधी जैसे अहिंसा के पुजारी ने अपने सेवाभाव से समस्त भारतीयों को स्वतन्त्रता एवं न्याय दिलाने का कर्त्तव्य पूर्ण किया था। गाँधी जी का अनुसरण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने भारत माता की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष एवं बलिदान को ही अपना कर्त्तव्य माना है तथा उसी को मुक्ति-मार्ग के रूप में स्वीकारा है। कवि ने भारतीयों की एकता और अखण्डता के बारे में कहा है कि वे एक साथ भारत माता की जयकार लगाते हैं। इन्हीं सबके कारण कवि ने भारत में सबका कल्याण माना है।
काव्य सौन्दर्य–
- भाषा– खड़ी-बोली
- शैली– मुक्तक/गीतात्मक
- गुण– प्रसाद
- छन्द– मुक्त
- शब्द-शक्ति– अभिधा
- अलंकार–
- अनुप्रास अलंकार- ‘कोटि-कोटि कण्ठों’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
- पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार- ‘एक-एक अनुयायी’ में ‘एक’ वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
Pls do this all for English also