भक्ति और नीति, बिहारी लाल। Class 10 UP Board Solution

कवि बिहारी जी का जीवन-परिचय

मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँई परै, स्यामु हरित-दुति होइ।
सोहत ओढ़ें पीतु पटु, स्याम सलौनै गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात।।
अधर धरत हरि के परत, ओठ-डीठि-पट-जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुष-रंग होति ।
या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहि कोई।
ज्यौं-ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होई।।
जगतु जनायौ जिहि सकलु, सो हरि जान्यौ नाँहि।
ज्यौं ऑखिनु सबु देखियै, आँखि न देखी जाँहि ।।
जप, माला, छापा तिलक, सरै न एकौ कामु ।
मन-काँचै नाचै वृथा, साँचे राँचै रामु ।।
दुसह दुराज प्रजानु कौं, क्यों न बढ़े दुःख-दंदु।
अधिक अँधेरौ जग करत, मिलि मावस रबि चंदु ।।

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