अजन्ता – डॉ. भगवतशरण उपाध्याय
गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर-
गद्यांश 1–
और जैसे संगसाजों ने उन गुफाओं पर रौनक बरसाई है, चितेरे जैसे रंग और रेखा में दर्द और दया की कहानी लिखते गए हैं, कलावन्त छेनी से मूरतें उभारते-कोरते गए हैं, वैसे ही अजन्ता पर कुदरत का नूर बरस पड़ा है, प्रकृति भी वहाँ थिरक उठी है। बम्बई के सूबे में बम्बई और हैदराबाद के बीच विन्ध्याचल के बीच दौड़ती पर्वतमालाओं से निचौंधे पहाड़ों का एक सिलसिला उत्तर से दक्षिण चला गया है, जिसे सह्याद्रि कहते हैं। अजन्ता के गुहा मन्दिर उसी पहाड़ी जंजीर को सनाथ करते हैं। (2022, 19)
प्रश्न-
- (क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
- (ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
- (ग) अजन्ता की मूर्तिकला की कौन-सी विशेषताएँ गद्यांश में बताई गई हैं?
उत्तर-
- (क) सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित ‘अजन्ता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक ‘डॉ. भगवतशरण उपाध्याय’ हैं।
- (ख) लेखक कहता है कि अजन्ता की गुफाओं में बने चित्रों का सौन्दर्य तथा गुफाओं को देखकर ऐसा लगता है मानो गुफाओं के पत्थरों को काटकर मूर्ति बनाने वाले कलाकारों ने यहाँ सौन्दर्य बरसा दिया है। चित्रकारों ने रेखाओं में रंग भरकर पीड़ा और करुणा वाले चित्रों को सजीव बना दिया है। शिल्पकारों ने अपनी छेनी और हथौड़े से पत्थरों को काटकर बनाई उभरी मूर्तियों में प्राण डाल दिए हैं, जिससे अजन्ता के दृश्य बहुत ही मनमोहक प्रतीत हो रहे हैं। प्रकृति ने भी उन गुफाओं में दोनों हाथों से सौन्दर्य लुटाया है। ऐसा लगता है कि प्रकृति भी ऐसे सौन्दर्य से अभिभूत होकर थिरकने पर विवश हो उठी है।
- (ग) अजन्ता की गुफाओं में पत्थरों को काटकर बनाई गई मूर्तियाँ अत्यन्त सुन्दर हैं। उनमें विभिन्न भाव उठते दिखाई देते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानो मूर्तियाँ अभी बोल पड़ेंगी। वे अत्यन्त सजीव प्रतीत होती हैं।
डॉ. भगवतशरण उपाध्याय का जीवन परिचय-
गद्यांश 2
पहले पहाड़ काटकर उसे खोखला कर दिया गया, फिर उसमें सुन्दर भवन बना लिए गए, जहाँ खम्भों पर उभरी मूरतें विहँस उठीं। भीतर की समूची दीवारें और छतें रगड़कर चिकनी कर ली गईं और तब उनकी जमीन पर चित्रों की एक दुनिया ही बसा दी गई। पहले पलसतर लगाकर आचार्यों ने उन पर लहराती रेखाओं में चित्रों की काया सिरज दी, फिर उनके चेले कलावन्तों ने उनमें रंग भरकर प्राण फूँक दिए। फिर तो दीवारें उमग उठीं, पहाड़ पुलकित हो उठे। (2022, 19)
प्रश्न-
- (क) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
- (ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
- (ग) पहाड़ों को जीवन्त कैसे बनाया गया है? गद्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
- (क) सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित ‘अजन्ता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक ‘डॉ. भगवतशरण उपाध्याय’ हैं।
- (ख) लेखक कहते हैं कि दीवारों, छतों और खम्भों को रगड़-रगड़कर चिकना बना लिया गया तथा उसके बाद गुफाओं के अन्दर उन चिकने पृष्ठों पर चित्रकारों के द्वारा अनेक चित्र बना दिए गए। उन चित्रों को देखते ही व्यक्ति मन्त्र मुग्ध हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे उन दीवारों, छतों आदि पर एक नई ही दुनिया का निर्माण कर दिया गया हो।
- (ग) पहाड़ों को जीवन्त बनाने के लिए सबसे पहले पहाड़ों को काटकर खोखला बनाया गया तथा उसके बाद अन्दर की दीवारों, छतों को घिस घिसकर चिकना बना दिया गया, फिर उन पर सजीव चित्र बना दिए गए, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानो पहाड़ जीवन्त हो उठे हों।
गद्यांश 3
कितना जीवन बरस पड़ा है इन दीवारों पर जैसे फसाने अजायब का भण्डार खुल पड़ा हो। कहानी-से-कहानी टकराती चली गई है। बन्दरों की कहानी, हाथियों की कहानी, हिरनों की कहानी। कहानी क्रूरता और भय की, दया और त्याग की। जहाँ बेरहमी है वहीं दया का समुद्र उमड़ पड़ा है, जहाँ पाप है वहीं क्षमा का सोता फूट पड़ा है राजा और कंगले, विलासी और भिक्षु, नर और नारी, मनुष्य और पशु सभी कलाकारों के हाथों सिरजते चले गए हैं। हैवान की हैवानियत को इंसान की इन्सानियत से कैसे जीता जा सकता है, कोई अजन्ता में जाकर देखे। बुद्ध का जवीन हजारों धाराओं में होकर बहता है। जन्म से लेकर निर्वाण तक उनके जीवन की प्रधान घटनाएँ कुछ ऐसे लिख दी गई हैं कि आँखें अटक जाती हैं, हटने का नाम नहीं लेती
M Imp. (2023, 20, 17, 14, 12)
प्रश्न-
- (क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
- (ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
- (ग) दीवारों पर बने चित्र किन-किन से सम्बन्धित हैं?
उत्तर-
- (क) सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित ‘अजन्ता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक ‘डॉ. भगवतशरण उपाध्याय’ हैं।
- (ख) लेखक अजन्ता की गुफाओं में बिखरे चित्रों के माध्यम से बिखरे सौन्दर्य के बारे में कहता है कि इन चित्रों की कला अत्यन्त सुन्दर है। ये चित्र इतने सुन्दर हैं कि वे जीते-जागते से प्रतीत होते हैं। लगता है कि संसार का जीवन इनमें समा गया है। ऐसा लगता है कि ये गुफाएँ सांसारिक जीवन का
अजायबघर हों, जिनका दरवाजा गलती से खुला छोड़ दिया गया हो। इन चित्रों में जीवन की कहानियों को एक-दूसरे से जोड़ा गया है। लेखक कहता है कि अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर जो जीवन व्याप्त है, उनमें गौतम बुद्ध के जीवन के माध्यम से दया और त्याग की, पशुओं के माध्यम से क्रूरता और दया की तथा पाप और क्षमा की कहानियाँ हैं। इनके माध्यम से परस्पर विरोधी भावों का अंकन सर्वत्र देखने को मिलता है। यदि कहीं क्रूरतापूर्ण चित्र है, तो साथ ही दयाभाव दर्शाता चित्र बना है। यदि एक चित्र में पाप का चित्रण है, तो उसके समीप ही क्षमा का झरना कल-कल करता बह रहा है। शिल्पकारों द्वारा की गई चित्रकारी में विविधता है; जैसे- राजाओं और कंगालों, नर और नारी, पशु और मनुष्य, भिक्षुओं एवं विलासियों के सजीव चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। लेखक का मत है कि ये चित्र उद्देश्यपूर्ण हैं। लेखक के अनुसार, अजन्ता के चित्रों के द्वारा हमें यह शिक्षा प्राप्त होती है कि हैवान की हैवानियत पर इन्सान की इन्सानियत से किस प्रकार विजय प्राप्त की जाती है। व्यक्ति सीखता है कि बुराई को अच्छाई से किस प्रकार जीता जा सकता है। इसका ज्ञान हमें अजन्ता की गुफाओं से ही
मिलता है। - (ग) अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर कलाकारों के हाथों राजा, उनकी अत्यन्त गरीब प्रजा, विलास में डूबे लोग, भिक्षु, नर-नारी तथा पशु आदि के चित्र हैं। इन गुफाओं पर जीवन के विविध रंगों से सम्बन्धित चित्र हैं, जो विभिन्न मनोभावों का प्रदर्शन करते हैं।