क्या लिखूँ ? – पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
गद्यांश 1-
जो तरुण संसार के जीवन संग्राम से दूर हैं, उन्हें संसार का चित्र बड़ा ही मनमोहक प्रतीत होता है, जो वृद्ध हो गए हैं, जो अपनी वाल्यावस्था और तरुणावस्था से दूर हट आए हैं, उन्हें अपने अतीतकाल की स्मृति बड़ी सुखद लगती है। वे अतीत का ही स्वप्न देखते हैं। तरुणों के लिए जैसे भविष्य उज्ज्वल होता है, वैसे ही वृद्धों के लिए अतीत। वर्तमान से दोनों को असन्तोष होता है। तरुण भविष्य को वर्तमान में लाना चाहते हैं और वृद्ध अतीत को खींचकर वर्तमान में देखना चाहते हैं। तरुण क्रान्ति के समर्थक होते हैं और वृद्ध अतीत के गौरव के संरक्षक। इन्हीं दोनों के कारण वर्तमान सदैव क्षुब्ध रहता है और इसी से वर्तमानकाल सदैव सुधारों का काल बना रहता है। M Imp (2020, 18, 17, 15, 12)
प्रश्न-
- (क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
- ख) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
- ग) (i) वर्तमान समय सुधारों का समय क्यों बना रहता है?
- (ii) युवा और वृद्ध व्यक्तियों के वैचारिक अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
- (क) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित पाठ ‘क्या लिखूँ?’ नामक ललित निबन्ध से उधृत है। इसके लेखक ‘श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी’ हैं।
- (ख) लेखक कहता है कि तरुण अर्थात् जिन नवयुवकों ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों, समस्याओं का सामना नहीं किया है और वे केवल सुखों से ही परिचित हैं, उनके लिए यह संसार अत्यन्त आकर्षक और सुन्दर प्रतीत होता है। वे इस सुन्दर संसार में अपने जीवन की मनोरम कल्पनाएँ करते हैं। जीवन-संघर्षों से अपरिचित होने के कारण जीवन रूपी दूर के ढोल सुहावने लगते हैं। जो लोग अपना बचपन, युवावस्था और प्रौढ़ावस्था पार कर वृद्धावस्था में कदम बढ़ा चुके हैं, उन्हें अपने अतीत का गीत गाना अच्छा लगता है। एक ओर नवयुवकों से भविष्य अभी दूर है, तो दूसरी ओर वृद्धों से उनका बचपन पीछे छूट गया है। यही कारण है कि युवा भविष्य के और वृद्ध बचपन के सपने देखते रहते हैं। लेखक कहता है कि तरुण और वृद्ध दोनों ही अपने वर्तमान से असन्तुष्ट दिखते हैं।
युवा वर्ग अपने उत्साह और साहस से वर्तमान को बदल देना चाहता है, वृद्धजन बीते समय को बेहतर मानते हैं। वे सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना चाहते हैं। इसी संघर्ष में दोनों का जीवन तनाव भरा हो जाता है। युवा अपने भविष्य के सपने वर्तमान में ही पूरा कर लेना चाहते हैं, जबकि वृद्ध अपने बचपन के सुखमय दिनों को वापस वर्तमान में लाना चाहते हैं, जो सम्भव नहीं होता है। इससे नवयुवक अपने वर्तमान को सुधारने में लगे रहते हैं और वृद्धजन अपनी गौरवपूर्ण संस्कृति की रक्षा में प्रयासरत् दिखते हैं। वृद्ध और युवा पीढ़ी के बीच यही स्थिति तनाव का कारण बनती है तथा दोनों के बीच मतभेद चलते रहते हैं। यही कारण है कि वर्तमान सदैव दुःखी बने रहने के साथ-साथ सुधार का युग बना रहता है। - (ग) (i) वर्तमान समय सुधारों का समय इसलिए बना रहता है, क्योंकि युवा हों या वृद्ध सभी अपने वर्तमान से दुःखी रहते हैं। युवा अपने भविष्य के सपनों को वर्तमान में ही पूरा कर लेना चाहते हैं, जबकि वृद्ध अपने बचपन का गुणगान करते रहते हैं। वर्तमान की यथार्थ स्थिति उनके सामने होती है, जिससे वे असन्तुष्ट रहते हैं।
- (ii) युवा और वृद्ध का वैचारिक अन्तर यह है कि युवाओं की यह सोच होती है कि भविष्य अधिक आकर्षक होगा। उनके लिए भविष्य उज्ज्वल होता है। वे भविष्य को वर्तमान में खींच लाना चाहते हैं। वे क्रान्ति के पक्षधर होते हैं। इसके विपरीत वृद्धों को उनका बचपन आकर्षक लगता है। वे अतीत के गौरव का संरक्षण करते हैं।
गद्यांश 2
हिन्दी में प्रगतिशील साहित्य का निर्माण हो रहा है। उसके निर्माता यह समझ रहे हैं कि उनके साहित्य में भविष्य का गौरव निहित है। पर कुछ ही समय के बाद उनका यह साहित्य भी अतीत का स्मारक हो जाएगा और आज जो तरुण हैं, वही वृद्ध होकर अतीत के गौरव का स्वप्न देखेंगे। उनके स्थान पर तरुणों का फिर दूसरा दल आ जाएगा, जो भविष्य का स्वप्न देखेगा। दोनों के ही स्वप्न सुखद होते हैं, क्योंकि दूर के ढोल सुहावने होते हैं। M Imp (2020, 18, 16, 14, 11, 10)
प्रश्न-
- (क) उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
- (ख) गद्यांश के रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
- (ग) प्रगतिशील साहित्य निर्माता क्या समझकर साहित्य निर्माण कर रहे हैं?
उत्तर–
- (क) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित पाठ ‘क्या लिखूँ?’ नामक ललित निबन्ध से उधृत है। इसके लेखक ‘श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी’ हैं।
- (ख) लेखक का मानना है कि वर्तमान में साहित्यकारों द्वारा ऐसे साहित्य की रचना की जा रही है, जिसमें नई विचारधारा के पोषक तत्त्व हैं। इन साहित्यकारों का मानना है कि इनमें भविष्य की असीम सम्भावना छिपी है, जिस पर युवा पीढ़ी गर्व कर सकेगी।
- जिस प्रकार, आज का युवा कालान्तर में वृद्धावस्था में पहुँच जाता है और वह अतीत की यादों में खोकर उसे अच्छा समझता है। उसी प्रकार, साहित्य भी सदैव आधुनिक नहीं रहता है। युवा साहित्यकारों द्वारा नवीन साहित्य का सृजन किया जाएगा, क्योकि देश, काल की माँग के अनुसार पुराना साहित्य अपनी प्रासंगिकता खो बैठता है, तव नव साहित्य का सृजन अत्यावश्यक हो जाता है, जो युवा साहित्यकारों द्वारा समय-समय पर किया जाता है।
- (ग) प्रगतिशील साहित्य-निर्माता यह समझकर साहित्य-निर्माण कर रहे हैं कि उनका साहित्य भविष्योन्मुखी है, जो भविष्य का गौरव समेटे हुए है। इस साहित्य पर युवा पीढ़ी गर्व कर सकेगी, क्योंकि इसमें भविष्य की सम्भावनाएँ और आवश्यकताओं को तलाश कर मानव की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास किया गया है।