हिमालय से एवं वर्षा सुन्दरी के प्रति : महादेवी वर्मा –

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ

टूटी है तेरी कब समाधि,
झंझा लौटे शत हार-हार;
सबह चला दृगों से किन्तु नीर !
सुनकर जलते कण की पुकार !
सुख से विरक्त दुःख में समान !
मेरे जीवन का आज मूक,
तेरी छाया से हो मिलाप,
तन तेरी साधकता छू ले,
मन ले करुणा की थाह नाप !
उर में पावस दृग में विहान !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश!
श्यामल-श्यामल कोमल-कोमल,
लहराता सुरभित केश-पाश! न
भ-गंगा की रजतधार में
धो आई क्या इन्हें रात?
कम्पित हैं तेरे सजल अंग,
सिहरा सा तन हे सद्यस्नात !
भीगी अलकों के छोरों से
चूतीं बूँदें कर विविध लास !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश!
सौरभ भीना झीना गीला
लिपटा मृदु अंजन-सा दुकूल;
चल अंचल से झर झर झरते
पथ में जुगनू के स्वर्ण फूल,
दीपक से देता बार-बार तेरा उज्ज्वल चितवन-विलास !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश!

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