पद ,सूरदास -पद्यांशों की सन्दर्भ-सहित व्याख्या । Class 10 UP Board Solution

सूरदास का जीवन परिचय

चरन-कमल बंदौ हरि राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौं सब कुछ दरसाइ।।
बहिरौ सुनै, गूँग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराइ।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदों तिहिं पाइ।।
ज्यौं गूँगै मीठे फल कौ रस अंतरगत ही भावै।।
परम स्वाद सबही सु निरंतर अमित तोष उपजावै।
मन-बानी कौं अगम-अगोचर, सो जानै जो पावै।।
रूप-रेख-गुन-जाति-जुगति-बिनु निरालंब कित धावै।
सब बिधि अगम बिचारहिं तातें सूर सगुन-पद गावै।।
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नंद के आँगन, बिम्ब पकरिबे धावत।।
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह को, कर सौं पकरन चाहत।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत।।
कनक-भूमि पर कर-पग छाया, यह उपमा इक राजति।
करि-करि प्रतिपद प्रतिमनि बसुधा, कमल बैठकी साजति ।।
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।
अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु को दूध पियावति ।।
मैं अपनी सब गाइ चरैहौं।
प्रात होत बल कै संग जैहौं, तेरे कहैं न रैहौं।।
ग्वाल बाल गाइनि के भीतर, नैंकहुँ डर नहिं लागत।
आजु न सोवों नंद-दुहाई, रैनि रहौंगौ जागत।।
और ग्वाल सब गाइ चरैहैं, मैं घर बैठो रैहौं।
सूर स्याम तुम सोइ रहौ अब, प्रात जान मैं दैहाँ।।
मैया हौं न चरैहौं गाइ।
सिगरे ग्वाल घिरावत मोसौं, मेरे पाइँ पिराइ।
जी न पत्याहि पूछि बलदाउहिं, अपनी सौहँ दिवाइ।
यह सुनि माइ जसोदा ग्वालनि, गारी देति रिसाइ।
मैं पठवति अपने लरिका कौ, आवै मन बहराइ।
सूर स्याम मेरौ अति बालक, मारत ताहि रिंगाइ।।
ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं।
बृन्दाबन गोकुल बन उपबन, संघन कुंज की छाँही।
प्रात समय मात जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत।
माखन रोटी दह्यौ सजायौ, अति हित साथ खवावत ।।
गोपी ग्वाल बाल संग खेलत, सब दिन हँसत सिरात।
सूरदास धनि-धनि ब्रजबासी, जिनसौं हित जदु-जात।
ऊधौ मन न भए दस बीस।
एक हुतौ सो गयौ स्याम सँग, को अवराधै ईस।।
इंद्री सिथिल भई केसव बिनु, ज्यौं देही बिनु सीस।
आसा लागि रहति तन स्वासा, जीवहिं कोटि बरीस।।
तुम ती सखा स्याम सुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूर हमारें नंद-नंदन बिनु, और नहीं जगदीस ।।
निरगुन कौन देस कौ बासी ?
मधुकर कहि समुझाइ सौह दै, बूझतिं साँच न हाँसी ।।
को है जनक, कौन है जननी, कौन नारि, को दासी?
कैसो बरन, भेष है कैसो, किहिं रस मैं अभिलाषी?
पावैगौ पुनि कियौ आपनौ, जो रे करैगौ गाँसी।
सुनत मौन हवै रह्यौ बाबरौ, सूर सबै मति नासी ।।

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